शैक्षणिक पुस्तकालय एवं पुस्तकालय स्वचालन ;वाराणसी जनपद के सन्दर्भ में एक अध्ययन

श्री अरूण कुमार गुप्त

शोधार्थी, पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान,

भगवन्त विश्वविद्यालय अजमेर।

सारांश

           आज के बदलते परिवेश में ग्रन्थालय स्वचालन आधुनिक ग्रन्थालयों की एक आधारभूत आवश्यकता है। जिसमें शैक्षिक ग्रन्थालयों की भूमिका अहम् मानी जाती है। यदि शैक्षिक ग्रन्थालयों पर ध्यान नही दिया गया तो ग्रन्थालयों की स्थिति दिन पर दिन बिगड़ती जायेगी । इसी बात को ध्यान में रखकर भारत सरकार सभी ग्रन्थालयों को कम्प्यूटरीकृत करने की योजना बना रही है। आज ग्रन्थालय किसी भी शैक्षिक संरचना का केन्द्र होता है। जहां विभिन्न विषयों का अध्यापन ज्ञान की झलक प्रदान करता है वही ग्रन्थालय ज्ञान के उस विस्तृत क्षेत्र का प्रसार करता है, जिसकी बौद्धिक उचाईयों को प्रदान करने की जरूरत होती है। ग्रन्थालय शिक्षण को निर्देशीय कार्य का पूरक होता है तथा शिक्षा के आदर्श को अग्रसारित करता है। गुणात्मक शिक्षा केवल ग्रन्थालयों के सहयोग से ही प्रदान की जा सकती है। ग्रन्थालयों के माध्यम से ही हम अनौपचारिक शिक्षा प्रदान करते है। यह अनौपचारिक शिक्षण संस्थानों से सम्बद्ध छात्रों को विशाल अध्ययन सामग्री का भंडार प्रदान करता है ।

     की.वर्ड: पुस्तकालय, ग्रन्थालय स्वचालन, ग्रन्थालयशिक्षण

           पुस्तकालय की विभिन्न दैनित्य क्रियाओं को कम्प्यूटर के माध्यम से स्वचालित रूप सम्पादित करने की व्यवस्था को पुस्तकालय स्वचालन कहते है। इसके अंतरगत पुस्तकालय के विभिन्न दैनित्य कार्यों जैसे पुस्तक अर्जन,पत्रिका नियंत्रण, सूचीकरण,परिसंचरण आदि को स्वचालित व्यवस्था के अंतरगत संगणको के माध्यम से सम्पादित किया जाता है, इस व्यवस्था में सभी संगणक नेटवर्किंग ;स्।छद्धके माध्यम से आपस में सम्बद्ध रहते है, इसी व्यवस्था को पुस्तकालय स्वचालन कहते है ।

           पुस्तकालय स्वचालन के द्वारा पुस्तकालय में कम से कम समय व श्रम का व्यय करते हुए अधिक से अधिक सूचनाओं को प्राप्त किया जाता है जिससे डा0 एस0आर0 रंगनाथन के पंच सूत्रों में से चैथे सूत्र के अनुसार ैंअम जीम जपउम व ितमंकमत का पूर्णतया पालन होता है। वर्तमान व्यवस्था में पुस्तकालय गुणवत्ता सेवा प्रदान करने के लिए इसका स्वचालीकरण करना परम आवश्यक है। इससे न केवल पुस्तकालयों के कार्यो को शीघ्र सम्पन्न किया जा सकता है बल्कि पाठकों को श्रेष्ठतम सुविधाएं उपलब्ध करायी जा सकेंगी।

           स्वचालीकरण का तात्पर्य इसी प्रक्रिया में यंत्र के उपयोग से सम्बन्धित है। यंत्र के उपयोग सेे समय एवं श्रम की बचत हंोती है तथा गुणवत्ता भी प्राप्त की जा सकती है । पुस्तकालय स्वचालन का अर्थ पुस्तकालय एवं सूचना सेवाओं में कम्प्यूटर के अनुप्रयोग से है, जो कि सूचना प्रौद्योगिकी से प्रभावित होता है। पुस्तकालय स्वचालन पुस्तकालय के दैनिक कार्यों से आरम्भ होकर सूचना प्राप्ति,खोज तथा संसाधन सहभागिता व नेटवर्क से सम्बन्धित कार्याें के निष्पादन तक पहुचाता है ।

           पुस्तकालय स्वचालन 1970 के दशक में पाश्चात्य देशों के कुछ महत्वपूर्ण विश्वविद्यालयों के समृद्ध पुस्तकालयों में प्रारम्भ किया गया । धन के अभाव के कारण भारत में इसका स्वरूप् 80 व 90 के दशक में सामने आया ।हमारे देश में पूर्व में पुस्तकालय स्वचालन के प्रमुख उदाहरण ठ।।त्ब्एक्म्ैप्क्व्ब् आदि के विशिष्ट पुस्तकालयेां में देखने को मिले। आज भारत के अधिकतर शैक्षणिक पुस्तकालय (मुख्यतः विश्वविद्यालय)स्वचालित है । स्नातकोत्तर महाविद्यालयों के पुस्तकालयेां को स्वचालन में बहुत सी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है लेकिन आज बदलते युग मे ंयह समस्या अब धीरे-धीरें समाप्ति की तरफ अग्रसर है।

शैक्षणिक पुस्तकालय स्वचालन के परिप्रेक्ष्य में अनेक विद्वानों ने पुस्तकालय स्वचालन की परिभाषाएं दी है जो इस प्रकार है ।

           बेली0पी0(2004) 1- विषयों को स्वतः ही स्वचालन करने व उसके वितरण को करने का काम किया। पुस्तकालय में क्रियाकलाप का स्वतः संचालन के लिए एक नक्शा पारित किया , प्रबन्ध तंत्र के कालेजों मे स्वतः संचालित करने के लिए एक नियम पारित किया जो पुस्तकालय कर्मचारियों को इसका प्रशिक्षण भी प्राप्त करने पर बल दिया। स्वचालन होने से कर्मचारियोे पर कार्य का बल कम पड़ता है।

           अकिनफ्लोरिन डब्ल्यू.ए. 2- ‘‘पुस्तकालय के कार्यों का स्वचालन करने के लिए साफ्टवेयर का प्रयोग किया जाना चाहिए। इससे कार्य करने में आसानी होती है इससे कार्य शीघ्र हो जाता है।‘‘

           ओन्डारी ओकेमवान्ट 3- ‘‘पुस्तकालय मे सूचनाआंे का आदान -प्रदान इंटरनेट के माध्यम से होना चाहिए। पुस्तकालय में उपयोगकर्ताओं को स्वतन्त्र अधिकार होना चाहिए कि वह जब चाहे अपनी जरूरत के अनुसार सूचना के माध्यम से प्राप्त कर सके। ग्रन्थालय में स्वचालन पूर्ण रूप से करना चाहिए ताकि स्वचालन से उपयोगकर्ता को उसके उपयोग में किसी प्रकार के परेशानी का सामना न करना पड़े । ग्रन्थालय में हर जरूरत के सामग्री को स्वचालन के माध्यम से उपभोक्ता तक आसानी से जा सके ।‘‘

           मटोरिया 4 - ‘‘मटोरिया ने भारत के विभिन्न सार्वजनिक पुस्तकालयों के स्वचालन का राष्ट्रीय अध्ययन किया और नेशनल इन्फार्मेशन सेन्टर के पुस्तकालय साफ्टवेयर की विभिन्न सीमाओं एवं क्षमताओं का अध्ययन साफ्टवेयर केे क्रियान्वयन एवं क्रिया विधियों के सन्दर्भ में क्रिया, एवं परिणाम के रूप में बताया कि पुस्तकालय के स्वचालन हेतु एक ऐसे कार्य कुशल स्वचालन साफ्टवेयर की आवश्यकता है जो सूचीकरण की सुविधा पूर्वक तरीके से क्रियान्वित कर सके ।‘‘

           शोध प्रविधि- उक्त विषय पर अध्ययन हेतु वारणसी जनपद के समस्त स्नातकोत्तर महाविद्यालयों का सर्वेक्षण किया गया । उक्त सर्वेक्षण में आकड़ों के संकलन हेतु प्रश्नावली एवं साक्षात्कार को माध्यम बनाया गया है । प्रश्नावली का उपयोग समस्त विश्वविद्यालयी पुस्तकालयों के उपयोग कर्ताओ से तथ्य संकलन हेतु एवं साक्षात्कार का माध्यम पुस्तकालयध्यक्षों एवं प्राचार्यो से सूचना संकलन हेतु किया गया ।

           पुस्तकालय के उपयोग कर्ताओं को तीन वर्गाें मुख्यतः छात्र, शिक्षक एवं कर्मचारी में चिन्हित किया गया, जिसमें से क्रमशः 05 प्रतिशत,15प्रतिशत, एवं 80 प्रतिशत संख्या को त्ंदकवउ ेंउचसपदह उमजीवक के माध्यम से एक प्रतिदर्श तैयार किया गया । इस प्रतिदर्श से शोध हेतु प्रश्नावली अथवा साक्षात्कार नियमावली पर आधारित आकड़े संकलित किये गये। जिसे महाविद्यालय में पुस्तकालयाध्यक्षों का पद रिक्त पाया गया । वहां शिक्षक प्रभारी का साक्षात्कार कर सूचना प्राप्त की गयी । प्राप्त आकड़ों का विश्लेषण विभिन्न संाख्यिकीय पद्धतियों के द्वारा किया गया ।

पुस्तकालय स्वचालन की आवश्यकता

           पुस्तकालय में संग्रहित प्रलेख,संग्रह, पुर्नप्राप्ति तथा सम्प्रेषण के लिए व्यवस्थित किये जाते है तथा पाठकों तक इन्हें पहुचाना ही पुस्तकालय का मुुख्य उद्देश्य है । आधुनिक समय मे सूचना प्रौद्योगिकी के निरंतर बढ़ते उपयोग ने पुस्तकालयों को भी बहुत प्रभावित किया है, वर्तमान समय में प्रलेख के संग्रह के थान पर उसमें संग्रहित सूचना उपयोगकर्ताओं के लिए अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है ।

           आधुनिक युग मे सूचना प्रौद्योगिकी मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित कर रही है । सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से सूचना प्राप्ति, सूचना प्रसंस्करण,सूचनाओं का संग्रहण , सूचनाओं का सम्प्रेषण एवं सूचनाओं की पुर्नप्राप्ति सम्भव है । सूचना प्रौद्योगिकी में विभिन्न आधुनिक तकनीकी में जैसे कम्प्यूटर एवं दूरसंचार सम्प्रेषण अदि के रूप में सम्मिलित है । कम्प्यूटर के माध्यम से जहां हम कम से कम समय में सूचनाओं का संग्रहण, विश्लेषण,प्रशंस्करण कर सकते है वही अत्याधुनिक दूरसंचार प्रणाली के माध्यम से संग्रहित सूचना, संसाधन, को एक दूसरे के पास आसानी से संचालित कर सकते है इन्हीं कारणों से आज के प्रगतिशील इलेक्ट्रªानिक युग में सूचना एक सम्पूर्ण संसाधन एवं शक्ति केे रूप मे ंसमाज के सामने आयी।

                निम्नलिखित कारणोे से पुस्तकालय स्वचालन की आवश्यकताओं को समझा जा सकता है।

  1. पुस्तकालयों मे प्रलेखों की संख्या मे निरंतर वृद्धि ।
  2. मुद्रित, अमुद्रित,रेखीय,श्रव्य,दृश्य व इलेक्ट्रानिक प्रलेखों का संग्रह ।
  3. पाठकों की विविध अवधारणाएं एवं पुस्तकालय की सीमाएं।
  4. पुस्तकालयाध्यक्ष के समक्ष सूचना प्रौद्योगिकी से उत्पन्न चुनौतियां।
  5. पुनरावर्तक दैनित्य कार्यों की अधिकता ।
  6.  सूचनाओं का व्यवस्थापन एवं पुर्नप्राप्ति ।
  7. राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय व विशिष्ट डेटा बेसों में उपलब्ध सूचना की खोज।
  8. नेटवर्क, संसाधन सहभागिता व इंटर नेट का प्रयोग ।
  9. सूचना सम्प्रेषण तकनीको का व्यापक प्रभाव ।
  10. परम्परागत पद्धतियों के क्रियान्वयान की सीमाएं ।
  11. पुस्तकालय बजट एवं कर्मचारियों की कमी ।

           पुस्तकालय स्वचालन के लिए आधारभूत आवश्यकताए ं-

           वर्तमान अध्ययन में पुस्तकालय स्वचालन हेतु निम्नलिखित आवश्यकताओं के अंतर्गत क्षेत्र का विश्लेषण किया गया।

ऽ उपयुक्त संग्रह ।

ऽ वित्तीय सहायता।

ऽ कम्प्यूटर हार्डवेयर

ऽ पुस्तकालय स्वचालन साफ्टवेयर

ऽ प्र्रशिक्षित कर्मचारी ।

ऽ उपयोगकर्ता प्रशिक्षण ।

ऽ अनुरक्षण एवं विकास ।

वाराणसी जनपद के स्नातकोत्तर कालेजों की स्थिति –

               वाराणसी जपनद में 16 स्नातकोत्तर महाविद्यालय है जिसमें 11 स्नातकोत्तर महाविद्यालय आर्य महिला स्नातकोत्त्र महाविद्यालय,बसंता कालेज राजघाट,महिला महाविद्यालय बी0एच0यू0,बसंत कन्या महाविद्यालय कमच्छा,डी0ए0बी0 पीजी कालेज अवसानगंज , हरिश्चन्द्र पीजी कालेज ,डा0 राममनोहर लोहिया स्नातकोत्तर महाविद्यालय लोहिया भैरव तालाब, महाराजा बलवंत सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय गंगापुर,जगतपुर पीजी कालेज जगतपुर,कालिका धाम स्नातकोत्तर महाविद्यालय सेवापुरी, बलदेव सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय बड़ागांव, शासन द्वारा वित्तपोषित है एवं 5 स्नातकोत्तर महाविद्यालयो में से 2 स्नातकोत्तर महाविद्यालय,अग्रसेन स्नातकोत्तर महाविद्यालय बुलानाला एवं उदयप्रताप कालेजद भोजूबीर स्वायत्तशासी है। 3 स्नातकोत्तर कालेज सुधाकर महिला महाविद्यालय,धीरेन्द्र महिला महाविद्यालय सुन्दरपुर, एवं डा0 घनश्याम सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय सोयेपुर स्वत्तिपोषित है । वाराणसी जनपद के 7 स्नातकोत्तर महाविद्यालयोें आर्य महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय चेतगंत, बसंता कालेज राजघाट, महिला महाविद्यालय बी0एच0यू0, सुधाकर स्नातकोत्तर महाविद्यालय खजुरी,अग्रसेन स्नातकोत्तर महाविद्यालय बुलानाला,बसंत कन्या महाविद्यालय कमच्छा,धीरेन्द्र महिला महाविद्यालय सुन्दरपुर में केवल महिलाओ को शिक्षा दी जाती है।

                वाराणसी जनपद में 5 स्नातकोत्तर महाविद्यालय आर्य महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय चेतगंज, बसंता कालेज राजघाट , महिला महसविद्यालय बी0एच0यू0,बसंत कन्या महाविद्यालय कमच्छा, एवं डी0ए0बी0 पीजी0 कालेज अवसानगंज,बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से संचालित होते है इनके अलावा बाकी सभी स्नातकोत्तर महाविद्यालय कालेज महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी से संचालित होते है। अध्ययन हेतु स्नातकोत्तर महाविद्यालयों में पुस्तकालय की स्थिति का पता लगाने के लिए किये गये सर्वेक्षण में जैसा कि पूर्व में कहा गया है,कुछ स्नातकोत्तर महाविद्यालय वित्तपोषित थे एवं कुछ स्नातकोत्तर महाविद्यालय स्व वित्तपोषित थे।स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों की वित्तीय स्थिति वित्तपोषित महाविद्यालयों से दयनीय पायी गयी । वही स्वायत्तशासी कालेजों की स्थिति बेहतर थी । वे सभी स्नातकोत्तर महाविद्यालय जो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से संचालित हो रहे थे,वित्तीय स्थिति उत्तम पायी गयी। स्ववित्तपोष्ति महाविद्यालयांे की स्थिति बाहर से तो चुस्त दुरूस्त नजर आयी लेकिन अंदर से उतनी ही व्यवस्थाविहीन रही। सभी वित्तपोषित स्नातकोत्तर महाविद्यालयों के प्रशासन में कर्मठ एवं दूरदशिता की भावना का संचार पाया गया । उक्त महाविद्यालयों के पुस्तकालयों की स्थिति भी गुणात्मक पायी गयी।सभी वित्तपोषित महाविद्यालयों में अध्ययन एवं अध्यापन से सम्बद्ध सभी प्राकार की पुस्तकें पत्र-पत्रिकाएं एवं समाचार पत्र प्रचुरता से उपलब्ध पाये गये।लेकिन स्ववित्तपोषित कालेजों में प्रबन्धकीय व्यवस्था होने के कारण महाविद्यालयों की व्यवस्था अंदर से खोखली प्रतीत हुई । प्रबन्धकीय महाविद्यालयांे प्रबन्ध व्यवस्था के दुष्परिणाम कर्मचारियों की कार्य प्रणाली, महाविद्यालयी व्यवस्था एवं कर्मचारियों के व्यक्तित्व में दृष्टिगोचर हुए। विभिन्न स्व वित्तपोषित/प्रबन्धकीय महाविद्यालयों में वेतन व्यवस्था मानको के अनुरूप नही पायी गयी । वैसे तो सैद्धान्तिक तौर पर वेतन भारत सरकार के पाचवें या छठवे वेतन आयोग के सिफारिशों के अनुरूप प्रदान किया जाना चाहिए, किन्तु वास्तविकता में उक्त महाविद्यालय के कर्मचारियों को वेतन 1000 से प्रारम्भ करके 6000या 8000 तक ही दिया जाता है यह वेतन वर्ष में मात्र 9 से 10 माह तक ही देय होता है प्रबन्ध तंत्र अपने महाविद्यालय के पुस्तकालय की स्थिति पर अच्छी प्रकार से ध्यान नही देता अतएव ऐेसे पुस्तकालयों की स्थिति अत्संत दयनीय पायी गयी । जब कभी ऐसे महाविद्यालयों में पुस्तकालय से सम्बन्धित किसी प्रकार जांच-पड़ताल होनी होती है तो उस समय कुछ विषय-वार पुस्तकों को मंगा दिया जाता है एवं उन्हीं पुस्तकों को पुस्तको ंमें संयोजि कर अपना काम चलाने का प्रयास किया जाता है।ऐसे स्ववित्तपोषित/प्रबन्धकीय महाविद्यालयों के पुस्तकालय से छात्र-छात्रओं को कभी भी अपने विषय से सम्बन्धि सामग्री या पुस्तकें उपलब्ध नही हो पाती । स्ववित्तपोषित/प्रबन्धकीय महाविद्यालय के प्राचार्य अपने कर्तव्य के प्रति कर्मठ तो हं लेकिन अपने अनुसार महाविद्यालय की व्यवस्था को नही चला सकते और अपनी ईच्छा के अनुसार महाविद्यालय को चुस्त दुरूस् त बनाये रखने के लिए कोई सख्त नियम नही बना सकते। वाराणसी जनपद के स्नातकोत्तर महाविद्यालयों में पुस्तकालयों की स्थिति -जनपद के समस्त महाविद्यालयों में पुस्तकालयाध्यक्ष का पद सृजित पाया गया । कुछ वित्तपोषित महाविद्यालयों में पुस्तकालयाध्यक्ष पद रिक्त थे । जिस वित्तपोषित महाविद्यालय में पुस्तकालयाध्यक्ष की नियुक्ति नही की गयी तो उनकी जगह पर पुस्तकालय के सहयोगी कर्मचारी को कार्य प्रभार दिया गया था। ऐसे पुस्तकालयाध्यक्ष/सहयोगी कर्मचारी पुस्तकालय के कार्याें में कुशल व प्रशिक्षित नही पाये गये । स्व वित्तपोषित महाविद्यालयों में पुस्तकालयाध्यक्ष का पद होता है लेकिन स्ववित्तपोषित/प्रबन्धकीय महाविद्यालयों में पुस्तकालयाध्यक्ष पद की गरिमा की जानकारी को अभाव पाया गया । प्रबन्ध तंत्र का दृष्टिकोण पुस्तकालयाध्यक्ष कें लिए मात्र एक क्लर्क तक ही सीमित पाया गया और उसी के अनुसार महाविद्यालय पुस्तकालय के कर्मचारियों को न्ळब् वित्त आयोग के मानक के अनुरूप वेतन नही दिया जाता है। महाविद्यालयों में गैर प्रशिक्षित कर्मचारी ही पुस्तकालय के कार्यों का सम्पादन करते है । यहा तक गरिमामयी पद पुस्तकालयाध्यक्ष पद भी बिना प्रशिक्षण के कर्मचारी नियुक्त कर दिये जाते है कुछ स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों में जहां प्रबन्धक जागरूक थे अपने कालेज के प्रति सचेत रहते हुए महाविद्यालयों में कुशल एवं प्रशिक्षित कर्मचारियों के सहयोग से कार्यों का सम्पादन करते है। कुछ स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों में ऐसे पुस्तकालयाध्यक्ष पाये गये जो कि पुस्तकालय के विषय में पूर्ण रूप से कुशल एवं प्रशिक्षित थे एवं पुस्तकालय को सही ढंग से संचालित कर रहे है ।

वाराणसी के स्नाताकोत्तर महाविद्यालयों में पुस्तकालय स्वचालन की स्थिति-

           वाराणसी के विभिन्न स्नाताकोत्तर महाविद्यालयों में किये गये सर्वेंक्षण से प्राप्त आकड़ों के आकलन एवं संकलन के विश्लेषण के पश्चात पुस्तकालयों में स्वचालन से सम्बन्धित निम्न तथ्य परिलक्षित हुए-

 ऽ महाविद्यालयों में पुस्तकालय स्वचालन हेतु पैतृक अथवा शासकीय संस्थाओं के वित्तीय सहयोग एवं मार्गदर्शन में पूर्णता का अभाव पाया गया ।

 ऽ महाविद्यालयों का प्रबन्ध तंत्र प्रशासकीय व्यवस्थाओं पर हावी होने के कारण उक्त व्यवस्था में प्राचार्यों अथवा पुस्तकालयाध्यक्षों की स्वतंत्र सोच, विकासशील प्रयास को संकुचित एवं सीमित हो गये है।

ऽ अशासकीय एवं स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों में पुस्ताकालय कर्मियों (मुख्यतः पुस्तकालयाध्यक्षों) के वेतन एवं भत्तों का निर्धारण न्ळब् मापदण्डों के अनुसार नही किया गया। जिससे उक्त लोगों मे लगन एवं कार्यकुशलता,नेतृत्व एवं दूरदर्शिता का अभाव पाया गया। डा0 एस0आर0रंगनाथन द्वारा प्रदत्त ‘कर्मचारी सूत्र‘ या न्ळब् मापदण्डों के अनुरूप पुस्तकालय कर्मियों की संख्या नही पायी गयी। जिसका प्रभाव विभिन्न पुस्तकालयोें की कार्य प्रणाली एवं सेवाओं में दूष्टिगोचर होता है ।

 ऽ महाविद्यालय के शैक्षणिक कार्यक्रमों एवं पुस्तकालय में उपलब्ध सुविधाओं में कहीं कोई तालमेल नही पाया गया । ऽ अधिकतर महाविद्यालयों में न तो पुस्तकालय स्वचालन किया गया है और न ही भविष्य में इस तरह की सम्भावना दृष्टिगोचर हुईं। ऽ पुस्तकालयों में मुख्यतः परम्परागत अध्ययन श्रोत ही सूचना के संग्रहण एवं पुर्नप्राप्ति के मुख्य आधार हैं । गैर एवं अद्यतन सूचना श्रोत जैसे म्.श्रवनतदंसए म्. ठववाए ब्क्. त्वउएक्ंजं ठंेमे का सर्वथा अभाव दृष्टिगोचर हुआ ।

 ऽ पुस्तकालय स्वचालन हेतु आवश्यक स्वचालन साफ्टवेयर के क्रय हेतु आवश्यक वित्त के अभाव को पुस्तकालय स्वचालन के मार्ग की प्रमुख बाधा के रूप में दर्शाया गया है किन्तु वर्तमान में उपलब्ध विभिन्न व्चमद ैवनतबम ैवजिूंतमे के सन्दर्भ में अनभिज्ञता एवं अनिक्षा स्पष्ट देखी गयी ।

ऽ कुछ पुस्तकालयो में जहां पुस्तकालय स्वचालन साफ्टवेयर का क्रय किया गया है,ने एक जागरूक क्रेता(उपभोक्ता) का परिचय देते हुए क्रय से सम्बद्ध विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं जैसे प्रशिक्षण,छूट, नवीन संस्करण एवं संशोधित संस्करण की मुफ्त उपलब्धता आदि का आवश्यक उपयोग प्राप्त करने हेतु दृढ़ ईच्छा शक्ति का अभाव देखा गया । ऽ कुछ महाविद्यालयों में जहां उपयुक्त संख्या में कम्प्यूटर पाये गये वहां कम्प्यूटर नेटवर्किंग ;स्।छद्ध का अभाव देखा गया एवं नेटवर्क पर आधारित सेवाओं जैसे इंटरनेट प्रोसेसिंग, ई-मेल आदि का अनुपलब्धता पायी गयी।

           पुस्तकालय स्वचालन आधुनिक पुस्तकालयों की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। पुस्तकालयों से प्रदान की जा रही पुस्तकालय एवं सूचना सेवाओं में गुणवत्ता, गतिशीलता ,विश्वसनीयता ,पारदर्शिता,परिशुद्धता की प्राप्ति हेतु पुस्तकालय स्वचालन अत्यंत महत्वपूर्ण है । वर्तमान मे ंपरिसंचरण , पुर्नप्राप्ति ,खोज प्रतिवेदन तथा धारावाहिकों के पुर्ननवीनीकरण सम्बन्धी कार्यों केा परम्परागत ढंग से करने पर अधिक मानव संसाधन की आवश्यकता पड़ती है तथा कार्य करते समय मानवीय त्रुटियों की अधिक सम्भावना रहती है ।सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रचार प्रसार  ने उपभोक्ताओं की अपेक्षा को बढ़ा दिया है जिससे ग्रन्थालय सेवाओं में कम्प्यूटर का प्रयोग अपरिहार्य हो गया है । यह अधिक ध्यान रखने योग्य बात है कि पुस्तकालय स्वचालन को एक दीर्घ कालीन नियोजन एवं सुविकसित रणनीति के आधार पर ही क्रियान्वित किया जाना चाहिएं।

सन्दर्भ सूची

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