महात्मा विदुर की लोकनीतिः आधुनिक परिप्रेक्ष में

डा.अनीता

असिस्टेंट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग,

म0 गां0 काशी विद्यापीठ,वाराणसी।

सारांश

                महाभारत लोकमग्लकामना का प्रस्तवन करता है। महाभारत भारतीय वाङ्मय का आकर ग्रन्थ है। महाभारत के उद्योगपर्व के अध्याय 33 से 40 ‘विदुरनीति’ के रूप में प्रसिद्ध हैं। इसमें महात्मा विदुर ने राजा धृतराष्ट्र को लोक-परलोक में कल्याण करने वाली बहुत-सी बातें समझायी हैं। इसमें व्यवहार, नीति, सदाचार, धर्म, सुख-दुःख प्राप्ति के कारण, त्याज्य एवं ग्राह्य कर्मों का निर्णय, त्याग की महिमा, न्याय का स्वरूप, सत्य, परोपकार, क्षमा, अहिंसा, मित्र के लक्षण, कृतघ्न की दुर्दशा ,निलोभता तथा राजधर्म का सुन्दर निरूपण किया गया है।

 की.वर्ड: महाभारत, विदुरनीति,लोकनीति

           महात्मा विदुर की नीति सभी प्रसङ्गों में अत्यन्त उपादेय है, परन्तु विस्तार के भय से प्रस्तुत शोध पत्र में प्रमुख नीतियों का संक्षेप में वर्णन किया जा रहा है- महात्मा विदुर की राजधर्म सम्बन्धी नीति- महात्मा विदुर ने राजधर्म सम्बन्धी जो विचार व्यक्त किये है, वे वर्तमान सन्दर्भ में शासक-वर्ग के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। उनके लिए विदुर का स्पष्ट उपदेश है कि ‘राज्य तो प्राप्त हो गया’ यह समझकर अनुचित व्यवहार नहीं करना चाहिए। उद्दण्डता सम्पत्ति को उसी प्रकार नष्ट कर देती है, जैसे सुन्दर रूप को वृद्धावस्था।

न राज्यं प्राप्तमित्येव वर्तितव्यसाम्प्रतम्।

श्रियं ह्यविनयो हन्ति जरा रूपमिवोत्तमम्।।1

           महात्मा विदुर के धर्म सम्बन्धि सन्देश वर्तमान समय के लिए अत्यन्त उपयोगी है, क्योंकि आज धर्माचरण शासकवर्ग में प्रायः न्यून हो गया है- धर्मेण राज्यं विन्देत धर्मेण परिपालयेत्। अर्थात् धर्म से ही राज्य प्राप्त करना चाहिए और धर्म से ही उसकी रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि धर्ममूलक राज्यलक्ष्मी को पाकर न राजा उसे छोड़ता है और न वही राजा को छोड़ती है। शासकवर्ग के लिए धर्माचरण पर विदुर ने विशेष बल दिया है। धर्माचरण करने वाले राजा की पृथ्वी धन-धान्य से पूर्ण होकर उन्नति को प्राप्त होती है तथा ऐश्वर्य की अभिवृद्धि करती है-

धर्ममाचरतो राज्ञः सद्भिश्चरितमादितः।

वसुधा वसुसम्पूर्णा वर्धते भूतिवर्धिनी।।

           शासक के लिए जनता का विश्वास विदुर ने आवश्यक बताया है। जो मनुष्यों में विश्वास उत्पन्न करना जानता है, प्रमाणित होने पर ही अपराधी को दण्ड देता है, जो दण्ड की मात्रा का ज्ञाता है तथा क्षमा के उपयोग को जानता है, उस राजा की सेवा में सम्पूर्ण सम्पत्ति आती है-

जानाति विश्वासयितुं मनुष्यान् , विज्ञातदोषोषु दधाति दण्डम्।

जानातिं मात्रां च तथा क्षमां च, तं ताद्वशं श्रीर्जुषते समग्रा।।2

राजा के लिए स्थिति, लाभ-हानि, कोष, देश दण्ड विधान के स्वरूप का ज्ञान आवश्यक है-

यः प्रमाणं न जानाति स्थाने वृद्धौ तथा क्षये।

कोषे जनपदे दण्डेन स राज्येऽवतिष्ठते।।3

                राजा को असत् उपायों से कपटपूर्ण कार्य की सिद्धि से दूर रहना चाहिए।4 काम और क्रोध राजा शत्रु हैं, ये दोनों विशिष्ट ज्ञान को लुप्त कर देते है।5 अतः जो राजा काम और क्रोध का परित्याग कर सुपात्र को धन देता है, विशेष एवं शास्त्र का ज्ञाता है, कत्र्तव्य को शीघ्र पूरा करने वाला है, उसे सब प्रमाण मानते है-

यः काममन्यू प्रजहाति राजा, पात्रे प्रतिष्ठापयते धनं च।

विशेषविच्छुतवान् क्षिप्रकारी, तं सर्वलोकः कुरुते प्रमाणम्।।6

           राजा के लिए ये सात दोष सर्वथा त्याज्य हैं- स्त्री विषय-आशक्ति, जुआ, शिकार, मद्यपान, वचन की कठोरता, कठोर दण्ड तथा धन का दुरूपयोग-

सप्त दोषाः सदा राज्ञा हातव्या व्यसनोदयाः।

प्रायशो यैर्विनश्यन्ति कृतमूला अपीश्वराः।।

           राजा को प्रजा से कर लेने के सम्बन्ध में एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए विदुर ने कहा कि- जिस प्रकार भौरा फूलों की रक्षा करता हुआ, उनके मधु का आस्वादन करता है, उसी प्रकार राजा भी प्रजाजनों की रक्षा करते हुए, बिना कष्ट दिये उनसे कर लेवे-

यथा मधु समादत्ते पुष्पाणि षट्पदः।

तद्वदर्थान्मनुष्येभ्यः आदद्यादविहिंसया।।7

                अन्याय से राज्य स्थायी रूप से नहीं रहता। जैसे हवा बादलों को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार अन्याय से राज्य छिन्न-भिन्न हो जाता है-

पितृपैतामहं राज्यं प्राप्तवान् स्वेन कर्मणा।

वायुरभ्रमिवासाद्य भ्रंशयत्यनये स्थितः।।8

               महात्मा विदुर ने राजा के मन्त्री, दूत एवं उनके गुणों, कार्यों आदि पर विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया है। महात्मा विदुर की लोक व्यवहार सम्बन्धी नीति- सामाजिक लोक व्यवहार के चार स्तम्भ माने गये हैं- आचार, धर्म, नैतिकता और व्यवहार। आचार के अन्तर्गत सदाचार, संयम, अनुशासन, सत्य, अहिंसा, परोपकार, दान और उद्योग को प्रमुख स्थान दिया गया है। धर्म आध्यात्मिक शुद्धि का आधार है। नैतिकता नैतिक जीवन के विकास की शिक्षा देती है। व्यवहार लोक जीवन के लिए अपनाने योग्य गुणों को बताता है। महात्मा विदुर ने इन पर मार्गदर्शन किया है। महात्मा विदुर ने धर्म का मार्ग बताते हुए कहा है कि यज्ञ, अध्ययन, दान, तप, सत्य, क्षमा, दया और अलोभ- ये आठ प्रकार के धर्म के मार्ग हैं-

इज्याध्ययनदानानि तपः सत्यं क्षमा घृणा।

अलोभ इति मार्गोयं धर्मस्याष्टविधः स्मृतः।।9

               इन गुणों पर विचार किया जाये तो ज्ञात होता है कि इनमें दान, तप, क्षमा, दया और लोभ न करना मानवीय संवेदनाओं से जुड़े हुए हैं। समाज में प्रतिष्ठा और सम्मान दिलाने वाले गुणों का वर्णन करते हुए महात्मा विदुर ने कहा है कि आठ गुण मनुष्य की शोभा में वृद्धि करते हैं-

अष्टौ गुणाः पुरुषं दीपयन्ति, प्रज्ञा च कौल्यं च दमः श्रुतं च।

पराक्रमश्चाबहुभाषिता च, दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च।।10

           ये आठ गुण हैं- बुद्धि, कुलीनता, इन्द्रियनिग्रह, शास्त्र ज्ञान, पराक्रम मितभाषी यथाशक्ति दान और कृतज्ञता। यदि इन गुणों पर गम्भीरतापूर्वक मनन किया जाये तो ज्ञात होता है कि ये गुण मनुष्य की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं तथा उसे समाज में प्रतिष्ठा भी प्राप्त कराते हैं। सदाचार पर अत्यधिक बल देते हुए महात्मा विदुर कहते है कि- सदाचार की रक्षा यत्नपूर्वक करनी चाहिए। धन का आवागमन तो जीवन में सदा लगा रहता है, अतः धन से क्षीण मनुष्य क्षीण नहीं माना जाता, किन्तु जो सदाचार से भ्रष्ट हो गया, उसे नष्ट ही समझना चाहिए-

वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च।

अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः।।11

           महात्मा विदुर ने स्वर्ग-प्राप्ति के दस साधन बताते हुए कहा है कि सत्य, विनय का भाव, शास्त्रज्ञान, विद्या, कुलीनता, शील, बल, धन, शौर्य और चमत्कारपूर्ण बात कहना- ये स्वर्ग के साधन है।12 सत्य के द्वारा ही धर्म की रक्षा होती है, योग से विद्या सुरक्षित होती है, सफाई से सुन्दर रूप की रक्षा होती है और सदाचार से कुल की रक्षा होती है-

सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते।

मृजया रक्ष्यते रूपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते।।13

           महात्मा विदुर ने मनुष्य-लोक के सुखों पर अपना विचार प्रकट करते हुए इन छः बातों को सुख प्रदान करने वाला कहा है- धनागम, नित्य निरोग रहना, पत्नी का अनुकूल और प्रियवादिनी होना, आज्ञाकारी पुत्र, अर्थकारी विद्या।

अर्थागमो नित्यमरोगिता च, प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।

वश्यश्च पुत्रोऽअर्थकारी च विद्या, षड् जीवलोकस्य सुखानि राजन्।।14

           महात्मा विदुर नारी को उच्च सम्मान देने की बात कहते है, वह नारी की विशेष रूप से रक्षा के लिए उपदेश देते हैं। नारी घर की लक्ष्मी है। वह अत्यन्त सौभाग्यशालिनी, पूजा के योग्य पवित्र तथा घर की शोभा है-

पूजनीय महाभागाः पुण्याश्च गृहदीप्तयः।

स्त्रियः क्षियो गृहस्योक्तास्तस्माद्रक्ष्या विशेषतः।।15

           वर्तमान समय में वृद्ध माता-पिता उपेक्षित हैं। उनके प्रति पुत्र-पुत्रियों द्वारा सम्मान की भावना में ह्रास हुआ हे। पाश्चात्य देशों में यह समस्या और भी प्रबल है। महात्मा विदुर के ये विचार आज भी उपयोगी हैं- अभिवादनशील तथा वृद्धों की सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल में वृद्धि होती है-

अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।

चत्वारि सम्प्रवर्धन्ते कीर्तिरायुर्युशो बलम्।।16

           विदुर मानवीय गुणों को अधिक महत्त्व प्रदान करते हैं। स्वादिष्ट भोजन अकेले नहीं करना चाहिए।17 आश्रितों में भोजन वितरित करके थोड़ा ही भोजन करने का निर्देश देते हैं-

मितं भुङ्क्ते संविभज्याश्रितेभ्यो।

मितं स्वपत्यिमितं कर्म कृत्वा।।18

               महात्मा विदुर द्वारा विद्यार्थियांे के लिए ये उपदेश वर्तमान सन्दर्भ में भी उपयोगी हैं- आलस्य, मद-मोह, चञ्चलता, गोष्ठी, उद्दण्डता अभिमान और लोभ- ये सात विद्योर्थियों के लिए सदा दोष माने गये हैं-

आलस्यं मदमोहौ च चापलं गोष्ठिरेव च।

स्तब्धता चाभिमानित्वं तथा त्यागित्वमेव च।।19

           इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि महात्मा विदुर की नीतियों का यदि यथार्थ रूप में अनुसरण किया जाए तो अनेक समस्याओं का समाधान सम्भव है। महात्मा विदुर के विचार न केवल राजसत्ता के लिए मार्गदर्शन करती है, अपितु मानव के लोक-व्यवहार का उचित मार्गदर्शन करती है। केवल आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें आत्मसात कर उनका प्रयोग किया जाए।

सन्दर्भ-

1. महाभारत , उद्योग पर्व,2. 28

2. वही, 1.110

3. वही, 2.10

4. वही, 2.6

5. वही, 2.66

6. वही, 1.109

7. वही, 2.17

8. वही, 2.27

9. वही, 1.85

10. वही, 3.52, 5.31

11. वही, 4.30

12. सत्यं रूपं श्रुतं विद्या कौल्यं शीलं बलं धनम्। शौर्यं च चित्रभाष्यं च दशेमे स्वर्गयोनयः।। महा. उद्यो. 3.59

13. महाभारत ,उद्योग पर्व, 2.39

14. वही, 1.87

15. वही, 6.11

16. वही, 7.74

17. वही, 1.50

18. वही, 1.123

19. वही 8.9